भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

508 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:30, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाथि फौज दा वडा शिंगार हुदा अते घोडे शिंगार ने दलां दे नी
अछा पहरना खावना शान शौकत एह सभ बिना ने जरां दे नी
घोड़े खान खटन करामात करदे अखि वेखदया जान बिन परां दे नी
मझां गाई शिंगार ने सथ तले अते नूंहां शिंगार ने घरां दे नी
खैरखाह दे नाल बदखाह<ref>बुरा मांगने वाला</ref> होना एह कम है कुतयां खरां<ref>खोते</ref> दे नी
मशहूर है रसम जहान अंदर पयार बहुटियां दे नाल वरां दे नी
दिल औरतां लैण पयार कर के एह गभरू मिरग ने सरां दे नी
तदों रन्न बदखाह<ref>बुरा चाहने वाली</ref> नूं अकल आवे जदों लत लगे विच फरां<ref>हड्डियाँ</ref> दे नी
वारस शाह उह इक ना कसी हुंदे जिन्हां वैर कदीम थीं जड़ां दे नी

शब्दार्थ
<references/>