भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
519 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:32, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फौज हुसन दी खेत विच खिंड पई तुरत चा लगोटड़े वटयो ने
संमी खेडदियां मारदियां फिरन गिधा फबी घत बनावट पटयो ने
तोड़ किकरों सूल दा वडा कंडा पैर चोभ के खून पलटयो ने
सहती अंदरों मकर दा फंद जड़या दंद मारके खून उलटयो ने
शिसत-अंदाज<ref>निशाने-बाज़</ref> ते मकर दा नाग कीता उस हुसन दे मोर नूं फटयो ने
वारस यार दे खरच तहसील विचों हिसो सिरफ कसूर दा लुटयो ने
शब्दार्थ
<references/>