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529 / हीर / वारिस शाह

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तकदीर नूं मोड़ना भला नाही सप्प नाल तकदीर दे डंग दे ने
जिहनूं रब्ब दे इशक दी चोट लगी दीदवान<ref>दर्शक</ref> रजाए<ref>कुदरत</ref> दे रंग दे ने
जेहड़े छड जहान उजाड़ वसन सुहबत<ref>संगत</ref> औरतां दी कोलों संग दे ने
कदे किसे दी कील<ref>बस में करना</ref> विच नांह आए जेहड़े सप्प स्याल ते झंग दे ने
असां चा कुरान ते तरक कीती सग मैहरियां दे कोलों संग दे ने
मरन देह जटी जरा बैन सुनीए होके निकलन रंग बरंग दे ने
जुआन मरे मैहरी वडे रंग होसन खुशी होई है अज मलंग दे ने
वारस शाह मुनाय के सीस दाड़ी हो रहे हां संग ते रंग दे ने

शब्दार्थ
<references/>