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535 / हीर / वारिस शाह

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जोगी रख के अणख दे नाल गैरत कढ अखियां रोह थी फुटया ई
एह हीर दा वारसी ही बैठा चा डेरयों सुआह विच सटया ई
सने जुतियां चैंक दे विच आवे साडा धरम ते नेम सभ पटया ई
लुट पुट के माल नखुटया ए कुट फाट के खोह विच सुटया ई
खेड़ा बोलदा नीर पलट अखी जेहा बानिया शहर विच लुटया ई
पकड़ सैदे नूं नाल फाहुड़ियां दे चोर यार वांगूं ढाह कुटया ई
दोवे बन्ह बांहां सिरों लाह पटका गुनाहगार वांगूं पकड़ छटया ई
शाना<ref>कंधे</ref> भंन के कुट चकचूर कीता लिंग भन्न के संघ नूं घुटया ई
वारस शाह खुदाए दे खौफ कोलों साडा रोंदयां नीर नखुटया ई

शब्दार्थ
<references/>