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544 / हीर / वारिस शाह
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कुड़ियां आखया जा के हीर ताईं अनी वहुटीए अज वधाईए नी
मिली आबेहयात पिआसयां नूं हुण जोगियां दे हथ हाईए नी
तैनू दोजख दी आंच है दूर होई रब्ब विच बहिश्त दे पाईए नी
पूरे रब्ब ने मेल की तारीए नी मोती लाल दे नाल पुराईए नी
वारस शाह कहु हीर दी सस तांई अज रब्ब ने चैड़ कराईए नी
शब्दार्थ
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