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550 / हीर / वारिस शाह

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डाची शाह मुराद दी आन रिंगी ऊतों बोलया साई संवारीए नी
शाला ढुक आवे हुश ढुक नेड़े आ चड़ी कचावे ते डारीए नी
मेरी गई कतार कुराह घुथी कोई सेहर कीती टूने हारीए नी
दाई सूई दी बोतड़ी एह डाची घिन छिक पलाने दी लाड़ीए नी
वारस शाह बहिश्त दी मोरनी तूं एह फहरशतयां ऊंठ ते चाड़ीए नी

शब्दार्थ
<references/>