भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
552 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:42, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
इक जाण भन्ने<ref>दौड़े</ref> बहुत नाल खुशी भला होया फकीर दी आस होई
इक जाण रोंदे जूह खेड़यां दी अज देखो ते चैड़ नखास<ref>मंडी</ref> होई
इक नाल डंडे नंगे जान भन्ने यारो पई सी हीर उदास होई
इक चितड़ वजांवदे जान भंउदे जो मुराद फकीर दी रास होई
वारस शाह ना सुंदयां ढिल लगदी जदों उसतरे नाल पटास होई
शब्दार्थ
<references/>