भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
562 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:44, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जदों शरह<ref>शरीयत</ref> दी आनके रजूह<ref>ध्यान</ref> होए काजी आखया करो ब्यान मियां
दिओ खोल सुनायके बात मैंनूं करां उमर खताब दा निआउं मियां
खेड़े आखया हीर सी साक चंगा घर चूचके सयाल दे जान मियां
अजू खेड़े दे पुत नूं खैर कीता होर ला थके लख तरान मियां
जंज जोड़के असां विआह आंदी टके खरच कीते ढेर दान मियां
लख आदमी दी ढुकी प्रथवी सी हिंदू सिख अते मुसलमान मियां
असां लायके दम विआह आंदी देस मुलक रहया सभो जान मियां
असां खोल्ह के हाल बियान कीता झूठ बोलना बहुत नुकसान मियां
रावन वांग लै चलया सीता ताईं एह छोहरे तेज जबान मियां
शब्दार्थ
<references/>