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569 / हीर / वारिस शाह

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बर वकत<ref>सही समय पर</ref> जे फजल<ref>कृपा</ref> दा मींह वसे बरा कौन मनावदा रूठयां नूं
लब यार दे आबहयात बाझों कौन जिंदगी बखशदा कठयां नूं
लब यार दे आबहयात बाझों कौन जिंदगी बखशदा कठयां नूं
दोवे राह फिराक दे मार लए करामात मनांवदी रूठयां नूं
आह सबर दी मार के शहर साडो बादशाह जाणे असां मुठयां नूं
बाझ सेजणां पीड़ वंडावयां दे नित कौण मनांवदा रूठयां नूं
बिनां तालयां<ref>किस्मत</ref> नेक दे कौन मोड़े वारस शाह दे नाल आ फुटयां नूं

शब्दार्थ
<references/>