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577 / हीर / वारिस शाह
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राहो राह सयालां दी जूह आए हीर आखया वेखके जूह मियां
जिथे खेडदी सी नाल खुशियां दे तकदीर सुटी विच खूह मियां
जदों जंझ आई घर खेड़यां दी चढ़ा तदों तूफान आया सिर नूंह मियां
डिठी थां जिथे कैदो फाटयां सी नाल सहेलियां बन्ह धरूह मियां
शब्दार्थ
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