भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाय रे शासन / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:57, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कैसन छै शासन आरू कैसन परशासन?
विदेशीया आवी कं जमैलकै सिहासन।

खाद, बीज, डीजल केरऽ बढ़लै महंगाई,
बेटीयो सियान भेलऽ केना कं विहाई,
मंहगऽ छै दाल, चाऊपर, मंहगऽ किरासन,
कैसन छै शासन...?।

एम.पी., एम.एल.ए. के गरम होय छै मुट्ठी,
रातें कॅ लिखावै छै डंकल के चिट्ठी,
घोटला के काम लेकिन मीट्ठऽ भाषण,
कैसन छै शासन...?।

कमीशनो के लोभऽ मेॅ जहर बेचै छै,
रोगबा जों सतावै तं माथऽ नोचै छै,
दबा जूटाबौं की बच्चा केरऽ रासन?,
कैसन छै शासन...?।

आयोडीन के नामों पेॅ छऽ टका नीमक,
सब्भें गोदामों मेॅ लागी गेलै दीमक,
मरल्हों पेॅ नै लागै मिलतै अरगासन,
कैसन छै शासन...?।