भाग 23 / हम्मीर हठ / ग्वाल कवि
दोहा
जग तें भयो उदास नृप, उपज्यो चित निरवेद।
जाके हित जुध कियो मैं, सो मर गयो सखेद॥230॥
छन्द
नहीं तात औ’ मात भ्रातें नहीं हैं।
नहीं पुत्र-बनिता जु सपनो सही है॥
नहीं कोट किल्ले, नहीं है खजाना।
नहीं मित्र कोई, सबी हैं बिराना॥231॥
नहीं ये जवाहर रहे जगमगे हैं।
नहीं वस्त्र अपने जु तन पै लगे हैं॥
नहीं सस्त्रखाने नहीं गज-तुरंग।
नहीं पालकी नालकी जेऊ तंगं॥232॥
सभी झूठ देखा जगत जोर जालं।
बिना ‘राम रामं’ हरै कौन कालं॥
बृथा बैस खोई इती क्यों सबी ते।
नहीं जोग तप जग्य कीयो सगीते॥233॥
पर्यो भूर भ्रम है, तिहारी हमारौ।
यही घोर संकट, करै को निबारौ॥
सतोगुन न कीयौ, रजोगुन बली है।
तमोगुन दुहूँ पै महा ही छली है॥234॥
वृथा लेजु में सर्प को भ्रम कर्यो है।
महाघोर भ्रम में जगत सब पर्यो है॥
बिना साधु-संगति, गुरु की कृपा बिन।
नहीं राम दीखै बृथा जाय दिन छिन॥235॥
दोहा
ऐसे बैन उचार कै, भूपति कियौ बिचार।
सीस चढ़ाऊँ संभु पै, सकल होय उद्धार॥236॥
सकल सभा कों जोरि कै, करी जु चित की चाहि।
राजतिलक पुजहिँ दियौ, घर-घर भयो उछाहि॥237॥
कवित्त
करिकै सनान-ध्यान हर-गुन गान करि,
ही में करि ज्ञान चल्यौ भूपति सुभायकै।
आयकै सिवालय में, जोर कर, सीस नाय,
अस्तुति करत चित चतुर लगायकै।
हेमदान, हयदान, गजदान, गऊदान,
बिबिध बिधान दान दिये हैं मँगाय कै॥
पूत को तिलक करि, संकर को सीस दियो,
पाय दियो तुरत विमान पर जायकै॥238॥
दोहा
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संत गुन सिधि सिधि ससी, कातिक कुहू बखान।
श्री हमीरहठ प्रगट्यो, अमृतसर सुभ थान॥239॥
जितनी जैसी जो सुनी, सो बरनी करि तोष।
औरहु बिधि कछु होय तौ, हमें न दीजै दोष॥240॥
॥इति श्री हम्मीरहठ सम्पूर्णम् शुभमस्तु॥