भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सम्पदा / मंजुश्री गुप्ता

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:14, 12 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंजुश्री गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्वर्णाभ सूर्य
चांदी सा चन्द्रमा
हीरे से चमकते तारे
बंद कर लो
अपनी ह्रदय मंजूषा में
जिस पर जरूरत नहीं
किसी ताले की
न चोरी का भय
महसूस करो
आनंद लो जी भर
ग्रीष्म का उत्ताप
वर्षा की रिमझिम फुहार
शीत ऋतु की ठंडी बयार
बच्चों की किलकारियां
अपनों का प्यार
पृथ्वी यान पर बैठ कर
परिक्रमा करो सूरज की
अंतरिक्ष में डोलो
कभी तो हृदय की तराजू पर
अपनी सम्पदा को तौलो !