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अपदस्थ / अजित सिंह तोमर

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प्रेम में अपदस्थ प्रेमी
से जब पूछा मैंने
अपना अनुभव कहो
उसने कहा
मेरा कोई अनुभव अपना नही
प्रेम के बाद कुछ अपना बचता है भला?

मैं इस बात पर हँस पड़ा
उसने कहा तुम प्रेम के अध्येता हो
प्रेमी नही
मैंने कहा आपको कैसे पता
प्रेम में कोई दूसरे की बात पर हँसता है भला?

अब मै थोड़ा उदास हो चुप बैठ गया
अब तुम पात्रता अर्जित कर रहे हो
मुझे सुनने की
मगर मै जो कहूँगा वो मेरा होगा
यह संदिग्ध है
मेरे बारे में पूछना तो उससे पूछना
जिसे मै याद हूँ भूलकर भी

मैंने कहा आप क्या बता सकेंगे फिर?
मैं बता सकूँगा सिर्फ इतना
मैंने जीना चाहा तमाम अभाव और त्रासदी के बीच
मैंने पाना चाहा तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद
मैंने बाँट दिया खुद को कतरा कतरा
मैंने खो दिया उसको लम्हा लम्हा
इस बात पर मुझे पुख़्ता यकीं है
वो साथ है भी और है भी नही।