भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रिय कवि / अजित सिंह तोमर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:11, 17 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित सिंह तोमर |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी तुम्हारा प्रिय कवि था मै
इतना प्रिय कि
खुद चमत्कृत हो सकता था
तुम्हारी व्याख्या पर
देख सकता था
पानी पर तैरता पतझड़ का एक पत्ता
और तुम्हारी हँसी एक साथ

कभी मैं बहुत कुछ था तुम्हारा
कवि होना उसमें कोई अतिरिक्त योग्यता न थी
तुम तलाश लेती थी
उदासी में कविता
मौन में अनुभूति
और दूरी में आश्वस्ति

मुद्दत से तुमसे कोई संपर्क न होने के बावजूद
इतना दावा आज भी कर सकता हूँ
याद होगी तुम्हें
मेरी लिखावट
मेरी खुशबू
और मेरी मुस्कान
लगभग अपनी पहली शक्ल में

कभी तुम्हारा प्रिय कवि था मै
मेरी कविताओं की शक्ल में मौजूद है
ढ़ेर सी अधूरी कहानियां
और बेहद निजी बातचीत
उन दिनों
मैं कर जाता था पद्य में गद्य का अतिक्रमण
जिसके लिए कभी माफ नही किया
मुझे कविता के जानकारों ने

कभी तुम्हारा प्रिय कवि था मै
इसका यह अर्थ यह नही कि
आज तुम्हें अप्रिय हूँ मै
इसका अर्थ निकालना एक किस्म की ज्यादती है
खुद के साथ
और तुम्हारे साथ

कवि एकदिन पड़ ही जाता है बेहद अकेला
इतना अकेला कि
उसे याददाश्त पर जोर देकर याद करने पड़ते है
अपने चाहनेवाले

कविता तब बचाती है उसका एकांत
स्मृतियों की मदद से

वो हँस पड़ता है अकेला
वो रो पड़ता है भीड़ में
महज इतनी बात याद करके

कभी किसी का प्रिय कवि था वह।