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एकदिन / अजित सिंह तोमर

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बहुत दिन बाद
मिलने पर पूछा उससे
क्या तुम्हें भी आवाज़ मोटी लगती है मेरी
याददाश्त पर जोर देकर सोचते हुए
उसनें कहा हाँ थोड़ी भारी है
मैंने कहा एक ही बात है
इस पर बिगड़ते हुए वो बोली
एक ही बात कैसे हुई भला
आवाज़ हमेशा भारी या हलकी होती है
मोटी या बारीक नही
मोटा आदमी हो सकता है
बारीक नज़र हो सकती है
तुम्हारी आवाज़ भारी है
मैंने कहा फिर तो तुम्हारे कान भी थकते होंगे
उसनें कहा नही
मेरा दिल थकता है कभी कभी
मैंने कहा कब थकता है दिल
लम्बी सांस लेकर उसने कहा
जब तुम्हारी आवाज़ भारी से मोटी हो जाती है
तब तुम्हारी नजर बेहद बारीक होती है
ये सुनकर मैं हँस पड़ा
उसने कहा तुम्हारी हँसी भारहीन है
मैंने कहा कब तौली तुमने
उसने कहा
जब तुम उदास थे।