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जमाना / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’

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वाह रे! बंदर बाट का जमाना
कहीं पर निगाहें तो कही पर निशाना।
अपनी बर्बादी का मंजर भला कौन नहीं देखता
काट देता समय पर वो खंजर कौन नहीं देखता
वाह रे! कुल्फी-चाट का जमाना
कहीं पर निगाहें तो कही...
नजरें क्या बदली नाजराना ही बदल गया
सामने आ गया मर्द जनाना ही बदल गया
वाह र!े यादव-जाट का जमाना
कहीं पर निगाहें तो कही...
हम देखते रह गये और वह छू मंतर हो गया
बात ऐसी की उसने बाहर से अंदर हो गया
वाह रे! डब्लू-डब्लू डॉट का जमाना
कही पर निगाहें तो कही...
समय पर बदल लो अपने आप को
कभी और न दूध पिलाना सॉप को
वाह रे! पैसा-नोट का जमाना
कही पर निगाहें तो कही...
करना है गर तुमको तो बस नाम करो
गीता से जो तुमने सिखा वो काम करो
वाह रे! नीति और वोट का जमना
कही पर निगाहें तो कही...
बाटना है तो सबको अपना प्यार बांटो
ऐसा जीवन से जीवन का उपहार बांटो
वाह रे! अदालत-कोट का जमाना
कही पर निगाहें तो कही...