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अकलोल बभना बकलोल बभना / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में तिलक चढ़ाने के लिए आये हुए ब्राह्मण का उपहास किया गया है तथा चेरियों के पीछे लगे रहने और अच्छी-अच्छी चीजों के पाने पर भी छोटी चीजों के लिए हठ करने का उल्लेख करके उस ब्राह्मण की क्षुद्रता दिखलाई गई है।

अकलोल<ref>बकलोल का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref> बभना बकलोल<ref>बेवकूफ; गूँगा</ref> बभना, बेदो<ref>वेद भी</ref> नै<ref>नहीं</ref> जानै पुरहैत<ref>पुरोहित</ref> बभना॥1॥
जहाँ जहाँ चेरिया धान कुटै जाय, तहाँ तहाँ पुरहैत खुद्दी माँगै जाय।
जहाँ जहाँ चेरिया भनसा करै जाय, तहाँ तहाँ बभना माँड़ पीबै<ref>पीने</ref> जाय॥2॥
दाल देलिहैन<ref>दिया</ref> चाउर देलिहैन गेला अँगना, एक रत्ती नोन<ref>नमक</ref> लै करै छै खेखना<ref>किसी चीज को पाने के लिए खुशामद करना; गिड़गिड़ाना; घिघियाना</ref>
धोती देलिहैन आगाँ<ref>शरीर में पहनने का वस्त्र; बगलबंदी; मिरजई</ref> देलिहैन गेला अँगना, एकटा गमछा लै करै छै खेखना॥3॥

शब्दार्थ
<references/>