बिजुबन बिजुबन कुइयामाँ खनायल / अंगिका लोकगीत
कुएँ की चिकनी मिट्टी पर बोये हुए दौने का रस भौंरा-रूपी दुलहे को लेते देखकर सास कहती है-‘तुम्हारी देह ढुलमुल है, मुँह से मजीठ चूता है, आँखें आम की फाँक की तरह हैं और ओंठ खिले हुए ताजे गुलाब की तरह। लगता है, तुम्हारे शरीर को स्वयं देवता ने ही बनाया है। तुम अब तक क्वाँरे क्यों थे?’ दुलहा उत्तर देता है-‘मेरे पिता दरबार में दीवान थे, चाचा खेती में व्यस्त और भैया व्यापार में फँसे थे। इसीलिए मैं क्वाँरा रह गया। अब ये लोग अपने-अपने काम से मुक्त हैं, इसलिए मेरा विवाह हो रहा है।’ फिर तो अपने ससुर कीनदी में दुलहे ने महाजाल फेंका। दो-एक बार में तो घोंघा और सेॅवार आये, लेकिन तीसरी बार का परिश्रम बेकार नहीं गया। इस बार क्वाँरी कन्या फँसी। दुलहे से उसकी अँगुली पकड़ने, अर्थात विवाह करने का आग्रह किया गया।
इस गीत में दुलहे के रूप का सुंदर वर्णन किया गया है। यह गीत अनेक आकर्षक प्रतीकों से भरा है।
बिजुबन<ref>वृंदावन, बिजली का वन</ref> बिजुबन कुइयामाँ<ref>कुआँ</ref> खनायल<ref>खुदवाया गया</ref> के चिकिनियों<ref>चिकनी</ref> माटी<ref>मिट्टी</ref> हे।
ओहि पैसी मालिनी दौना<ref>एक पौधा; जिसकी पत्तियों में विशेष प्रकार की तीव्र सुगंध होती है। दामन। फूल का दोना</ref> सँजोगै, भँवरा पैसी रस लेय हे॥1॥
घर से बाहर भेल बाबू से कवन बाबू, भै गेल माझे ठाँय<ref>बीच</ref> ठाँड़<ref>खड़ा</ref> हे।
देहिया जे तोहर ढुलमुल दुलरुआ, मुँह सेॅ चुऔ मजीठ हे॥2॥
अँखिया जे लागौ दुलरुआ आम के फँकिया, ओठे लागौ फुलले गुलाब हे।
ओठो जे अँग बाबू देव उरेहल, किए बाबू रहल कुमार हे॥3॥
बाबा जे हमर दर रे देवनियाँ<ref>दरबार में दीवान</ref>, पितिया जोतै कुरखेत हे।
भैया जे हमर जीरवा लदनियाँ<ref>जीरा की लदनी करना; यहाँ व्यापार से तात्पर्य है</ref>, तै हम रहलौं कुमार हे॥4॥
बाबा जे छोड़त दर रे देवनियाँ, पितिया छोड़त कुरखेत हे।
भैया जे छोड़त जीरवा लदनियाँ, आबे होयत हमरो बियाह हे॥5॥
किनका नदिया में झिलमिल पनियाँ, किनका घोंघा<ref>घोंघा; एक शंखजातीय जलजीव</ref> सेमार<ref>एक जलीय पौधा; शैवाल</ref> हे।
कौने बाबू के नदिया में छलकी<ref>छलछल करने वाली</ref> मछरिया, कौने बाबू फेंके महाजाल हे॥6॥
एक जाल छाँकल<ref>डाला; खींचा</ref> दुलरुआ, दुइ जाल छाँकल, पड़ी गेल घांेघा सेमार हे।
तेसर जाल जब छाँकल दलरुआ, फँसि गेल कनियाँ कुमार हे।
लेहो बाबू अँगुरी लगाय हे॥7॥