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कहँमा के मेघिया गरजन लागे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बेटी ने अपने पिता से ‘चंद्रज्योति हार’ की माँग की है। पिता ने बेटी से स्वेच्छानुसार धन-संपत्ति, हाथी-घोड़ा, गाय-भैंस आदि लेने का आग्रह किया, लेकिन ‘चंद्रज्योति हार’ देने में अपनी असमर्थता प्रकट की। बेटी ने कहा- ‘ये सभी चीजें आपको, चाचा को और भैया को बढ़े’। आप लोगों की सुख-संपत्ति की परिपूर्णता हो, मुझे तो केवल ‘चंद्रज्योति हार’ ही चाहिए।’ अंत में, पिता ने बेमन होकर बेटी से कलम-दवात लाने को कहा, जिससे वह उस हार के संबंध में आवश्यक लिखा-पढ़ी कर सके। फिर भी, पिता को दुःख है कि उसके वंश में ऐसी दुष्ट लड़की पैदा हुई, जो न मरी, न जली और जिसने अपने पिता से ही सवाल-जवाब किया।

कहँमा के मेघिया<ref>मेघ; बादल</ref> गरजन लागे, कहँमाये बरिसै बूँद हे।
किनका के कोखि में धिया रे जनम लेल, माँगै जनरजोति<ref>चंद्रज्योति नामक हार</ref> हार हे॥1॥
सरँग<ref>स्वर्ग; आकाश</ref> में मेघिया गरजै लागल, लंका में परि गेल बूँद हे।
राजा रे जनक कुल धिआ रे जनम लेल, माँगे चनरजोति हार हे॥2॥
धन त संपति बेटी तोहरा के देबौ, नहीं देबौ चनरजोति हार हे।
धन त संपति हो बाबा तोहरा के बाढ़ै, हम लेब चनरजोति हार हे॥3॥
हथिया हथिनियाँ गे बेटी तोहरा के देबौ, नहीं देबौ चनरजोति हार हे।
हथिया हथिनियाँ हो बाबा चाचाजी के बाढ़ै, हम लेबै चनरजोति हार हे॥4॥
गैया महिसिया<ref>भैसेॅ</ref> गे बेटी, तोहरा के देबौ, नहीं देबौ चनरजोति हार हे।
गैया महिसिया हो बाबा भैयाजी के बाढ़ै, हम लेबै चनरजोति हार हे॥5॥
आनहो<ref>लाओ</ref> हे बेटी कलम दबतिया, लिखि देब चनरजोति हार हे।
मरबो न कैल बेटी जरबो न कैल, तोहें कैल बाबा से जबाब हे॥6॥

शब्दार्थ
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