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कचन थार कपूर के बाती / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सीता-स्वयंवर में सम्मिलित होने राम जनकपुर पहुँचे। सीता ने उन्हें देखा, लेकिन उसे उनकी कोमलता का ध्यान करके यह विश्वास नहीं हुआ कि वे धनुष तोड़ सकते हैं। सीता ने रो-रोकर राम को पत्र लिखा। राम उसकी घबराहट को समझ गये और उन्होंने धनुष को तोड़ डाला। फिर, समारोहपूर्वक सीता का विवाह संपन्न हुआ।
जनमानस ने ऐतिहासिक तथ्य के विपरीत राम के पास पत्र लिखवाकर सीता को साधारण नारी के रूप में चित्रित किया है।

कंचन थार कपूर के बाती, महादेब पूजन हमें जायब हे।
गाई<ref>गाय</ref> के गोबर ऐंगना निपलौं, धनुख दिहलै ओठगाँय हे॥1॥
राम हथिन कोमल धनुख बड़ भारी, के रे धनुख भारी तोरे हे।
मलिया के बगिया में उतरल रामचंदर, सीता सोचइ ठाढ़ हे॥2॥
कानिया<ref>रो-रोकर</ref> कानिया सीता चिठिया लिखौलनि, दिअगन<ref>दे आओ</ref> रामचंदर हाथ हे।
हँसी हँसी रामचंदर चिठिया पढ़लनि, सीता त गेलों हदियाय<ref>घबरा गई</ref> हे॥3॥
बामे हाथ रामचंदर धनुख उठौलनि, दाहिने कैलन नवखंड हे।
भेलै बियाह सीता सिर सेनुर, जै जै बोलू सभ लोग हे॥4॥

शब्दार्थ
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