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चारहि दिसि चार खम्हा गराबल / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में राम द्वारा सीता से उनकी माँ का परिचय प्राप्त करने और सीता का अपनी भाभी के व्यवहार से दुःखी होने का उल्लेख हुआ है।
यह गीत बहुत ही कारुणिक है। इसमें सीता की माँ सुनयना के बदले मंदोदरी का नाम आया है, जो ऐतिहासिक तथ्य के अनुकूल नहीं, लेकिन यह कल्पना लोकमानस के लिए असंभव नहीं।

चारहिं दिसि चार खम्हा<ref>खंभा</ref> गराबल, बीचहिं बेनिया के छत्र हे।
ओही उठँग<ref>किसी ऊँची वस्तु का कुछ सहारा लेना</ref> कै बैठल जनक राखि, सीता के होए छै बिआह हे॥1॥
भेल बिआह रामजी कोहबर चलला, सिया लेल अँगुरी लगाय हे।
मैं तोहिं पूछौं सीता हे पेयारी, कौने छिकी अम्माँ तोहार हे॥2॥
लालियो ओढ़न लाली पहिरन, लालियो सिर में सेनूर हे।
वहै देखु आहे रामजी माइ मँदोदरी, जिनकर नयना झझाइ<ref>झझान, लगातार धीरेे-धीरे बहना</ref> हे॥3॥
अम्माँ बोलै बेटी नित दिन मँगायब<ref>बुलवाऊँगा</ref>, बाबा बोलै छब मास हे।
भैया बोलै जग रे परोजन, भौजो के मुख नहिं बोल हे॥4॥
अम्माँ के कानने<ref>रोने से, क्रन्दन</ref> गँगा बहि गेलै, बाबा के भींजल पटोर हे।
भैया के काननें जमुना बाढ़ि आयल, भौजो के हिरदा कठोर हे॥5॥
दूधें नहैहअ भैया पूत भरैहअ, नित उठि करिह काज हे।
सात सौतिनियाँ भैया भौजी सेज धरिहअ, घूरि<ref>लौटकर</ref> हायब भौजी राज हे॥6॥

शब्दार्थ
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