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गँगाहिं पारअ सेॅ बभना जे आयल / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

गँगाहिं पारअ सेॅ<ref>से</ref> बभना जे आयल, चनना छै गुलेजार।
सेहो चनना पिन्हे<ref>पहने</ref> कवन लाले बाबू, पिन्ही चले ससुरार॥1॥
घोड़ा के लगाम पकैड़ि<ref>पकड़कर</ref> बाबा जे आयल, धूपो न लेहो गमाय।
कैसे हमें धूप गमैबै हो बाबा, तिरिया के लगन उताह<ref>उतावला</ref>॥2॥
गँगाहिं पारअ सेॅ मलिवा<ref>माली</ref> जे आयल, मौरिया छै गुलेजार।
सेहो मौरिया पिन्हे कवन लाले बाबू, पिन्ही चले ससुरार॥3॥
घोड़ा के लगाम पकैड़ि बाबा जे आएल, धूपो न लेहो गमाय।
कैसे हमें धूप गमैबै हो बाबा, तिरिया के लगन उताह॥4॥
गँगाहिं पारअ सेॅ दरजी जे आयल, मौजा<ref>मोजा</ref> छै गुलेजार।
सेहो मौजा पिन्हे कवन लाले बाबू, पिन्ही चले ससुरार॥5॥
घोड़ा के लगाम पकैड़ि बाबा जे आयल, धूपो न लेहो गमाय।
कैसे हमें धूपो गमैबै हो बाबा, तिरिया के लगन उताह॥6॥
गँगाहिं पारअ सेॅ बजजबा जे आयल, टोपिया छै गुलेजार।
सेहो टोपिया पिन्हे कवन लाले बाबू, पिन्ही चले ससुरार॥7॥
घोड़ा के लगाम पकैड़ि बाबा जे आयल, धूपो न लेहो गमाय।
कैसे हमें धूपो गमैबै हो बाबा, तिरिया के लगन उताह॥8॥
गँगाहिं पारअ में दोकनमाँ जे लागल, अँगूठी छै गुलेजार।
सेहो अँगुठी पिन्हे कवन लाले बाबू, पिन्ही चले ससुरार॥9॥
घोड़ा के लगाम पकैड़ि बाबा जे आयल, धूपो न लेहो गमाय।
कैसे हमें ध्ूापो गमैबै हो बाबा, तिरिया के लगन उताह।
धूप मोरा अहेरन पहेरन<ref>पहनावा</ref>, धूपे चले सँगे साथ॥10॥

शब्दार्थ
<references/>