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बसहा चढ़ल सिब आयल पाहुन / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

शिव विवाह करने के लिए बसहा पर बैठकर आये। उनके गले के सर्प, भयंकर रूप और उछल-कूद से गौरी की माँ घबरा गई। वह गौरी को साथ लेकर घर में बंद हो गई और अपनी गौरी का विवाह शिव से नहीं करने का निश्चय किया। गौरी ने खिड़की से शिवजी से निवेदन किया कि कृपया आप अपना रूप बदल लें, जिससे गाँव के लोग विवाह-संस्कार अच्छी तरह देख सकें। शिवजी ने गौरी की बात मान ली और उन्होंने स्नान करके अपना रूप बदल लिया। फिर तो सारा संस्कार सानंद संपन्न हुआ।

बसहा चढ़ल सिब आयल पाहुन, दुअरहिं भै गेल ठाढ़ हे।
परिछन चलली माय मनायनी, नाग छोड़ल फुफकार हे॥1॥
सेहो<ref>उसे</ref> देखि माइ हे मनहिं डेरायली, छोड़ल बिधि बेबहार हे।
माड़ब तोरल पुरहर<ref>द्वार कलश; कलश के ऊपर रखा जाने वाला पूर्ण पात्र, जिसमें अरवा चावल या जौ भरा जाता है</ref> फोड़ल, मौरी कैल थकचून<ref>चकनाचूर</ref> हे॥2॥
धिया ले मनायनी मंडिल घर पैसल, ठोकी लेल बजर केंबार हे।
बारी<ref>कम उम्र की</ref> गौरी हम घरहिं में राखब, हमरो गौरी रहति कुमार हे॥3॥
खिरकी में मुँह दै गौरी पुकारै, सुनु सिब बचन हमार हे।
एक बेरी<ref>एक बार</ref> आहो सिब भेस बदलिऔ<ref>बदलिए</ref>, देखत नैहर परिबार हे॥4॥
भसम मेटाइ सिब चनन लगाबू<ref>लगाइए</ref>, करि आबू<ref>आइए</ref> गँगा असलान हे।
भेस बदली सिब चौका चढ़ि बैठल, देखहो नगर के लोग हे॥5॥
जोरल लगहर<ref>मिट्टी का गोल और लंबा पात्र, जिसके ऊपर दीप लगा रहता है</ref> नेसल<ref>जलाया</ref> पुरहर, मौरी कैल समतूल<ref>ठीक; बराबर</ref> हे।
धिया ले मनायनी माड़ब चढ़ि बैठल, होबे लागल बिध बेहबार हे॥6॥

शब्दार्थ
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