♦ रचनाकार: अज्ञात
ससुराल में, कोहबर में प्रवेश करते समय दरवाजे पर दुलहे का रास्ता रोककर उससे इनाम में उसकी बहन और माँ को ही माँगकर उसके साथ परिहास करने का उल्लेख इस गीत में हुआ है।
देहरी<ref>दरवाजा</ref> छेंकाबन<ref>छेंकने का इनाम</ref> हमरा चुकैभऽ<ref>चुकाइएगा</ref>, ए रघुबंसी दुलहा।
तबे कोहबर घर जाहु, ए रघुबंसी दुलहा॥1॥
नै हम लेब दुलहा, अन धन सोनमा।
नै हम लेब गले हार, ए रघुबंसी दुलहा॥2॥
हमरा के दोअ<ref>दीजिए</ref> दुलहा, कवन बहिनी।
भैया के राजी खुसी मनायब, ए रघुबंसी दुलहा॥3॥
राजा दसरथ जी के, तीन पटरानी।
तहुँ<ref>उसमें से</ref> में दीअ एक दान, ए रघुबंसी दुलहा।
दुनु घर रहतै अबाद, ए रघुबंसी दुलहा॥4॥
शब्दार्थ
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