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हँसी पूछू नानूमी बिहुँसी पूछू नानूमी / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हँसी पूछू नानूमी<ref>नूनू; दुलहे के लिए प्यार भरा संबोधन</ref> बिहुँसी पूछू नानूमी, देखे देहो दाँतहुँ के जोति<ref>दाँत की ज्योति, यहाँ चारित्रिक परीक्षा से तात्पर्य है</ref> हे।
कैसे के देखे देब दाँतहुँ के जोति, कोहबर में सासु बहूत हे।
कोहबर में सरहोजि<ref>साले की पत्नी</ref> बहूत हे॥1॥
एतना बचन जबे सुनलनि सोहबी, खाट छोडिय भुइयाँ लोटे हे।
अँगना बोहारैत सलखी गे चेरिया, सरहोजि देहो न बोलाय हे।
आबहो सरहोजि बैठू पलँग चढ़ि बुझि लिहऽ ननदो गियान<ref>ज्ञान</ref> हे॥2॥
मरद के जतिया<ref>जाति</ref> अपनो नहिं हुये<ref>होता है</ref>, भौजी<ref>भाभी; भाई की पत्नी</ref> जे बोलै रँग रभस<ref>स्नेह से परिपूर्ण हँसी-मजाक</ref>, हे।
एक बोलिओ बोले हे, बोलियो बोलै छै अनेक हे।
मरद के जतिया अपनो नहिं हुये, हँसी हँसी बिरह चढ़ाबे हे॥3॥

शब्दार्थ
<references/>