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झपियाहिं गुअबा सुखिये गेइलो / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पत्नी ने अपने पति से किसी फूल की माँग की। पति ने उसे लाने में अपनी असमर्थता प्रकट की। इस पर पत्नी ने यह कहकर पति की कायरता और बेवकूफी पर व्यंग्य किया- ‘मेरा जन्म गरीब के घर में और मेरा विवाह बेवकूफ से हुआ, मेरी कोई इच्छा कैसे पूर्ण होगी?’ पति अपनी नवेली पत्नी के इस व्यंग्य को कैसे बरदास्त करे? वह उस फूल के पाने का उपाय पत्नी से पूछकर चल पड़ा। वहाँ वह बागीचे में रखवाले द्वारा पकड़कर पीटा गया। फिर, रखवाले को पहचान कर कि यह तो मेरा साला ही है, उसने अपना परिचय दिया और तभी वह मुक्त हो सका। पति को इससे पश्चात्ताप तो हुआ ही, साथ ही अपनी पत्नी की होशियारी का भी पता चला कि उसने अपने भाई के सामने लज्जित करने के लिए ही ऐसा स्वाँग रचा था।

झपियाहिं<ref>सींक की एक प्रकार की ढक्कनदार पिटारी</ref> गुअबा<ref>सुपारी</ref> सुखिये गेइलो, मैलो भेइलो अनेगो<ref>एक प्रकार का फूल</ref> के फूल।
ओहि लै अउरी<ref>रूठना</ref> लेले गे कनियाय सुहबी, हमें लेबो हे परभु अनेगो के फूल।
हमें लेबो हे परभु, एराँची<ref>इलायची</ref> के फूल॥1॥
निरधन काखि जनम भेइलो, छोटबुधिया<ref>छोटी बुद्धि का; बेवकूफ</ref> ठाम<ref>के यहाँ; नजदीक</ref> बिहा<ref>विवाह</ref>।
कौने देता अनेगो के फूल।
एतना बचन जब सुनलकै दुहा बाबू, चलि भेइले एराँची के चोरिया॥2॥
कौने रूपे बाड़ी<ref>घर के पास की वाटिका</ref> पैसबो, कौने रूपे एराँची तोड़बो।
मकरा<ref>मकड़ा</ref> रूपे बाड़ी पैसबो, सुगबा रूपे एराँची तोड़बो।
बड़ो एराँची पागो में खोसिहैं, छोटो छोटो बरधो<ref>बरद; बैल</ref> लधैहैं<ref>लदवाना</ref>॥3॥
एक घौर<ref>घौद</ref> तोड़लक दुइ घौर तोड़लक, आबि गेइलो रखबरबा।
फूलो के गाछी लगाय बान्हलक, फूलो के सटिया मारलक॥4॥
राखि के मारो परेखि के मारो, हमें छिकौं सरबा बहनोइया तोर॥5॥
आबे मन पुरलौ गे सुहबी, बाबा ठैयाँ बन्हौलें।
भैया ठैयाँ मरबौलें॥6॥

शब्दार्थ
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