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पटबा सागेर लुदुर बुदुर गे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में गाली के माध्यम से पटुआ और पोई के साग की प्रशंसा की गई है। सीमावर्त्ती क्षेत्र से प्राप्त इस गीत पर बँगला का प्रभाव स्पष्ट है।

पटबा<ref>पाट का; पटुए का</ref> सागेर<ref>साग</ref> लुदुर बुदुर<ref>लद-बद; ढीला-ढाला; लसीला</ref> गे, पौरे<ref>एक साग, इसकी लत्तर में पान के आकार की मोटे दलवाली पत्तिया लगती हैं; पोई</ref> सागेर गे भाजी<ref>तरकारी; साग</ref>।
खाइ लिहें<ref>खा लेना</ref> गे कनियाँ बौगें<ref>एक साग; संभवतः कपास; बाँगा</ref>, सागेर गे भाजी।
छुटिये जैतौ<ref>छूट जायगा</ref> गे कनियाँ, आँखेर मुखेर<ref>आँख-मुख का</ref> गे चाँसी<ref>ठंडक; भारीपन; कीचड़</ref>॥1॥
कबुलिए<ref>स्वीकार कर लेना</ref> लिहें गे कनियाँ, हलुमानेर<ref>हनुमान जी का</ref> गे पाटी<ref>पूजा-द्रव्य</ref>।
छुटिए जैतौ गे कनियाँ, आँखि मुखेर चाँसी॥2॥

शब्दार्थ
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