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पिन्हिय ओढ़िये सुतलाँ ऐगनमाँ / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में पति-पत्नी के बीच मनमुटाव के कारण दोनों के बीच के उत्तर-प्रत्युत्त का वर्णन है। पति पत्नी से बोल नहीं रहा है। पत्नी नैहर चले जाने की धमकी देती है। इस पर पति उसे डराने के लिए दूसरी शादी कर लेने की बात कहता है। पत्नी के लिए सौत असह्य है, इसलिए वह यमुना में डूबकर प्राण त्याग देने का अपना निश्चय प्रकट करती है। पति भी सहज ही माननेवाला नहीं। वह भी कहता है कि जब तुम यमुना में डूबने लगोगी, तो मैं तुम्हारे बालों को पकड़कर बाहर खींच लाऊँगा।

पिन्हिय ओढ़िये सुतलाँ ऐंगनमाँ, मुखहुँ नै<ref>मुख से भी नहीं</ref> बोललै रे बलमुआँ।
जो तोहें अहे पिया मुख नहिं बोलभो<ref>बोलोगे</ref>, नैहरबा चलि जैबै<ref>जाऊँगी</ref> बलमुआ॥1॥
जो तोहें अहे धनि नैहरबा चलि जैभो, दोसर करि लैबै रे बिरीजनारी।
जो तोहें अहे पिया दोसर करि लैभो<ref>लाओगे</ref>, जमुनमाँ धँस मारभौं रे बलमुआ॥3॥
जो तोहें अहे धनि जमुनमाँ धँस मरभो, जटा रे धरि लैभों रे बिरीजनारी॥4॥

शब्दार्थ
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