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केकरा ऐसन मोरी धिया लागै सुन्नरि / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

चाँद-सूरज के समान सुंदरी, सींक के समान पतली और फूल के समान सुकुमार बेटी को, जिसे माँ ने बहुत यत्न से दूध पिला-पिलाकर पाला-पोसा है, दामाद ले जाना चाहता है। माँ का ऐसे समय विछोह के दुःख से कातर हो उठना सहज है। वह बहुत ही कोमल शब्दों में अपने दामाद से अपनुम करती है कि इस बेटी को मैंने बड़े यत्न से पाला-पोसा है। इसे तुम सँजोकर रखना। यह तो गृह-कार्य में कुशल भी नहीं है। अभी तक तो यह सुपती-मौनी का खेल खेलती रही है।

केकरा ऐसन मोरी धिया लागै सुन्नरि, कथिय<ref>किस चीज; क्या</ref> जे पोसलौं पिलाय।
कौने जे आनलक<ref>ले आया; लाया</ref> बतीसो कहरिया, धिया लै के<ref>लेकर</ref> जैतै पराय<ref>भाग जायगा, पराय=दौड़कर भागना</ref>।
बोलु नै सुनु रे जमाय॥1॥
चान सुरुज ऐसन धिया मोरी सुन्नरि, बतीसो सुआ<ref>धार; धरा</ref> दुधबा पिआय।
जमैया जे आनलक बतीसो कहरिया, धिया लै के जैतै पराय।
बोलु नै सुनु रे जमाय॥2॥
केकरा ऐसन धिया मोरी पातरि, केकरा ऐसन सुकुमारि।
सुपुति मउनी धिया खेलहु न जानै, सेहो कैसे बसतै ससुरारि।
बोलु नै सुनु रे जमाय॥3॥
सींकिया<ref>सींक</ref> जे ऐसन धिया मोरी पातरि, फुलबा ऐसन सुकुमारि।
सुपती मउनी धिया खूब खेलय जानय, पिया लय बसतै ससुरारि॥4॥
मड़बा केकाते काते<ref>किनारे-किनारे; अगल-बगल</ref> सासु मिनति<ref>विनती</ref> करै, सुनु बर मिनति हमार।
बड़ रे जतन सेॅ पोसलौं में येहो धिया, एकरो जे राखिहो<ref>रखना</ref> जुगुताय<ref>सँजोकर; सुरक्षित; जुगाकर</ref>।
बोलु नै सुनु रे जमाय॥8॥

शब्दार्थ
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