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रूपवती राधा / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

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पैंइयां पैंजीनी रामा बिंदिया लिलरवा हो।
लहंगा गुलाबी अनमोल हो सांवलिया॥
नीली पीली लाली लाली अंगिया जड़ल रामा।
ओढ़नी सबज बूटेदार हो सांवलिया॥11॥
अँखिया काजल कोर गले चन्द्रहरवा हो।
खिललो गुलाब गोर गाल हो सांवलिया॥
अधर पै टुहू टुहू लालीयो बिराजै रामा।
मनहु कमल दल छोर हो सांवलिया॥12॥
ओठवा पै मंद मंद हसियो लखावैया रामा।
मोतिया गुंथल नथिया शोभैय हो सांवलिया॥
चम चम चमकैय रामा मन मनटीकवा हो।
मंगिया में सिकियो सिन्दूर हो सांवलिया॥13॥
मह मह कहकैय रामा बेलिया के तेलवा हो।
जुरवा गुंथल जूहिया फूल हो सांवलिया॥
गोरी सुकुमारी सिर दधि के मटुकिया हो
कुंज कुंज छुम-छम नाचैय हो सांवलिया॥14॥