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पाँच सदाचारी / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

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पांचो कुमार सुर वीर हिलि मिलि रहैय।
खेली कुदी खाय संग साथ हो सांवलिया॥
तनिको न भेदभाव अपना में राखैय रामा।
जेना एक हार पांचो फूल हो हो सांवलिया॥20॥
मीठी मीठी बोलिया में सब के पुकारै रामा।
सतवादी युधिष्ठिर कहावैय हो सांवलिया॥
आयु के समान भीमसेन बलबनमां हो।
तनिको न बल के घमण्ड हो सांवलिया॥21॥
तिरवा कमानधारी इन्द्र से भी तेज रामा।
अरजुन वीर छमा धीर हो सांवलिया॥
अश्वनी कुमार सन गुरु के जे पुजता हो।
नकुल सहदेव बेद रूप हो सांवलिया॥22॥