भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुर्योधन / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:43, 28 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मण सिंह चौहान |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तय करी बात दुवो घुमि घामि देखैय रामा।
कलाकारीगीरी माया सुर हो सांवलिया॥
गजब हैरान होबैय देखी देखी कारीगरी।
फीक लागैय गैय अपनो महल हो सांवलिया॥
बुझियो न परैय रामा जल कि जमीनमां हो।
जमीन जानी पैरबा बढ़ावैय हो सांवलिया॥
एक डेग बढैय उत छप देके गिरैय रामा।
भींजी गेलैन सुन्दर बसन हो सांवलिया॥
घोट टू घोट पानी यों कर कठ के भीतर गेलैय।
डुबकि सबकि उपरावैय हो सांवलिया॥