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अरजुन पछतावा / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

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देखि देखि निज लोग डटलो समर रामा।
हाथ-पांव ढील मोर होबैय हो सांवलिया॥
थर थर कांपैय रामा हमरो शरीरबा हो।
भुटुकि भुटुकि देह आबैय हो सांवलिया॥
हथवा सें गिरे चाहे गाण्डीव धनुष रामा।
चमरी में जेना आग लागैय हो सांवलिया॥
गोह के बदरिया से घेरि-घारी अैलैय रामा।
ठोप ठोप लोर अंखिया डारैय हो सांवलिया॥
ठोप ठोप पनियों कि राखे परैय अखिया हो।
जो दया के बियार झकझोरैय हो सांवलिया॥
गड़ बड़ मची गेलैय अरजुन के हीयरा में।
आपे आप दया उमरैलैय हो सांवरिया॥
अबे तबे करैय रामा करम धरमुवा हो।
पानी बिनु मरैय जेना धान हो सांवलिया॥
टक टक ताकैय हसैंय माधव किसनमा हो।
अरजुन मृग-मोह देखैय हो सांवलिया॥
छतरी किसान बान डारि देबैय धरती हो।
पतझर जेना बनी जैतैय हो सांवलिया॥
परलय के हुँकार में अंगार छीलैय देहिया हो।
पाप के जलावें बाला काल हो सांवलिया॥
अतरज करैय। ‘लछुमन’, ऐतबर सुरमा हो।
युध छांरि कोना काज धरैय हो सांवलिया॥