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पछतावे का असर / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान
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खार होयके ताकत न हाय! बोलय अरजुन।
सिरबा में घुमनी सतावैय हो सांवलिया॥
केशव! केशव! इकि लछन दिखाबैय रामा।
तछन बिलछन बुझावैय हो सांवलिया॥
बुझियो न परैय रामा निज कुलनास करी।
किय किय लाभ मोरा होतैय हो सांवलिया॥