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जातिधर्म कुलधर्म डांवाडोल / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान
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वरन संकर पैदा-करैय वाला ये हो दोषबा हो।
कुल नास करैब बाला हाय हो सांवलिया॥
सनातन जाति धरम आरु कुल धरम हो।
एके साथ दुवो डुबी जैयतै हो सांवलिया॥
इगरो जानत कृष्ण जरुरे नरकवा हो।
कुल धरम नास करी पाबैय हो सांवलिया॥
हाय! हाय! राज सुख लागि कत बर लोभ।
स्वजन सनेहिया के मारैय हो सांवलिया॥
दूर! छिय! हमु सभे ये हो शूरवीर रामा।
एतबड़ पतिया उठयबैय हो सांवलिया॥
बारो नैंय पारो रामा कत-दिन नरका में।
डुबि डुबि कर उपरय वैय हो सांवलिया॥