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पारवती अरज / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

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हमरो जानत स्वामि बैकुण्ठ त पावैय रामा।
गियान करि गीता लरि लोग हो सांवलिया॥
बिनियां डोलाय छी स्वामी फुल पान धरैंयछी हो।
जरिको पिरीतिया दिखाऊ हो सांवलिया॥
कोमल हथेलिया में लाली लाली बिनियां हो।
हौले हौले बहिया सें हौंकैय हो सांवलिया॥
निरमल दुध सन झक मफ सड़िया हो।
कोमल कमर छैय कसल हो सांवलिया॥
हियरा पै हलकी कमल दल ओड़नी हो।
कारे घुंघरील जुरा फूल हो सांवलिया॥
कुश के शीतल पाटी घुटना पारिये देवी॥
बर नीक आशन जमावेय हो सांवलिया॥
बार बार मुसुकाती एक टक ताकती हो।
पिय रूप मातली लखाती हो सांवलिया॥
तपसीन भेष गौरी जामिनी अनूप छबि।
चेहरा गुलाबी गोर फूल हो सांवलिया॥
कान में कनक फूल मांग में सिन्दुर रामा॥
अगर चंदनमा लिलार हो सांवलिया॥
अरजुन विषाद योग महातम कहु रामा।
मृगनैनी शुक बैनी बोलैय हो सांवलिया॥
सुन सुन प्राण प्यारी कोमल दुलारी रामा।
बर बेस बतिया पंुछत हो सांवलिया॥
रमा नाम मिसरी गोपाल नाम घीया हो।
घोरी घोरी शरबत पीऊ हो सांवलिया॥
गीता पढ़िये हमहुं पूजबा के योग भेलां।
तीनों लोक पूजैय छैय मानैय छैय हो सांवलिया॥
जरिको न मोह माया हमरा के सालैब रामा।
जल में कमल सन रहौंच हो सांवलिया॥
ये हो टा कहानी कही श्री भगबनमां हो।
लछमीनि मन बहलाबैय हो सांवलिया॥
से हो टा कहानी सुनु शैल दुलारी रामा।
शुभ दिन शुभ घड़ी आजु हो सांवलिया॥
भगवत गीता रामा इश्वर के देहिया हो
गियान भगती केर घर हो सांवलिया॥
पांच भाग गीता रामा सिर आरू मुंहवा हो।
दस भाग अनुपम हाथ हो सांवलिया॥
एक भाग विमल हिरदय सुनु सुकुमारी।
दुव भाग कोमल चरण हो सांवलिया॥
पुन के परताप से उदय होता ज्ञान रामा॥
करम योग रत हाता लोग हो सांवलिया॥
जीवन मरण सुख हंसि खेलि भोगैय रामा।
परम धाम गति ऊते पाबैय हो सांवलिया॥
अब सुनु कोमल बदनी मृदुबैनी हो।
पाप केर नास केना होबैय हो सांवलिया॥