भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देहों के रिश्ते / महेश सन्तोषी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:23, 1 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश सन्तोषी |अनुवादक= |संग्रह=अक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं यह अस्वीकार नहीं करती
कि कभी मेरे तुमसे देह के रिश्ते थे,
उन दिनों हम ज्यादातर
देह की भाषा ही बोलते थे
सुनते थे, समझते थे
वे हमारी देहों के उन्माद के
उत्सवों के दिन थे।

तुम विश्वास क्यों नहीं करते
कि मैं बदली नहीं हूँ
वैसी की वैसी हूँ, वही हूँ।
पर मैं अभी तक अपने
यौवन के पहले वसंत
प्यार की पहली सीढ़ी
पर ही नहीं खड़ी हूँ।
मैं बीते हुए अतीत कमो
कब का भूल गई हूँ।

समय ने जिन सम्बन्धों
पर आवरण ढांक रखा है
तुम उन्हें बार-बार निरावृत
क्यों करना चाहते हो?
उन्हें भूलना क्यों नहीं चाहते?
क्या तुम सिर्फ मेरी
देह को ही चाहते हो
मुझे नहीं चाहते?