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विवाहित नहीं थी / महेश सन्तोषी

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मैं तुम्हारी विवाहिता नहीं थी, तुम्हारी विधवा भी नहीं थी
क्योंकि तुम जीवित हो!
मैं तो बस एक औरत थी, जो कुछ वर्षों तक तुम्हारी ज़िन्दगी बनी रही।
हमारे बीच किसी तरह का लाभ हमें नहीं जोड़े था;
न मैंने अपने-आपको किसी तरह बेचा था,
न आपने मुझे आधा-पूरा खरीदा था!

दैहिक सम्बन्ध भी थे हमारे बीच, पर,
विदैहिक सम्मोहन भी क़द में किसी से कम नहीं थे।
बोलो, इस रिश्ते को तुम कैसे परिभाषित करोगे?
कैसे सार्थक नाम, सन्तुलित अर्थ दोगे?

मल, तुम याद नहीं कर पाओगे, विस्मित भी नहीं कर पाओगे,
मैं तुम्हें खोकर भी खोजती रहूंगी,
तुम मुझे खोकर भी मेरे बने रहोगे!
मुझे खोकर भी...।