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एक प्यास का अहसास / महेश सन्तोषी

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हमारे प्यार का क़द कैसा रहा? ऊँचा रहा या नहीं रहा?
पर, एक अीााव था, जो ज़िन्दगी भर वैसा का वैसा बना रहा;
एक प्यास थी, जो शाश्वत बनी रही; कोई एक अहसास था,
जो प्यासा रहा!

दर्द कहाँ से मोल लिया? किसी ने पूछा भी नहीं, हमने बताया भी नहीं,
और हमने गिनीं भी नहीं, अन्दर ही अन्दर दर्द की कितनी नदियाँ बहीं;
इन आँखों की हँसी बनकर रही या पलकों पर पसीजती रहीं,
हमारी उम्र की सारी गलियाँ तुमसे सजी रहीं!

साँसों से नापा जाता है प्यार का कद, आँखों से भी,
बने-अधबने आँसू से भी,
पर हम कोई हिसाब नहीं रख पाए,
कितनी व्यथाएँ दृगों से बहीं या रहीं अनबही-अनकहीं;
बहुत से नाम थे, जो हमारे नाम से जुड़े भी, घटे ीाी,
पर, सारी ज़िन्दगी बस अकेले तुम्हारे नाम रही!