भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कंधों पर सूरज / अनुभूति गुप्ता
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:56, 2 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुभूति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कंधों पर ढोये-ढोये चल रहे हैं
हम आप लिए हुए
सूरज का ताप कहीं।
आँखों में भरकर
सागर के तल से
उठती हुई गर्म भाप कहीं।
हो चुका
जीवन खराब कहीं
चोटिल तन-मन कहीं
कह आये हैं हम आप
सवेरे को
वरदान से शाप कहीं।
ले आयी
अन्तर्मन में,
पीड़ा की बाढ़ कहीं
प्यासी पथराई आँखें
चाहे हैं बरसात कहीं।
ढोये-ढोये
सूरज को कंधों पर
सालों-साल
जिये हम आप कहीं।