भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पथिक / अनुभूति गुप्ता

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:59, 2 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुभूति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आकाश में
काले-काले मेघ
उमड़ते हैं
घुमड़ते हैं
ज़ोर-ज़ोेर से
गरजते हंै
पथराते हैं
बीच रास्तांे पर,
ओले की बरसात
करते हंैं।
पथिक मुश्किल में है
कि
अपनी मंज़िल को
वह कैसे पाये,
अभी तो यात्रा आरम्भ हुई
घोर श्रम करके
यहाँ तक पहुँचा
कैसे वह,
उल्टे पाँव लौट जाये।
मन की दुर्बलता को
त्यागकर
संघर्ष की क़िताब के
पन्नों को टटोलकर
आखिर मंज़िल तो...
उसे पानी है
जीवन में बाधाएँ
क्या है-
यह
तो वह बरसात है
जो करती
अपनी मनमानी है।