नदियों के
बीचों-बीच उभरी
नुकीली
निर्दयी
सख़्त
चट्टानों ने
सोख लिया
बहती नदियों का
निर्मल जल।
छीन ली,
धारा की मधुर कल-कल।
अनमने पत्थर
उसकी छाती पर
बैठे हैं,
देखकर
नदियों की
रोनी सूरत
कुछ ज़्यादा ही
ऐठे हैं।
नदियों के
बीचों-बीच उभरी
नुकीली
निर्दयी
सख़्त
चट्टानों ने
सोख लिया
बहती नदियों का
निर्मल जल।
छीन ली,
धारा की मधुर कल-कल।
अनमने पत्थर
उसकी छाती पर
बैठे हैं,
देखकर
नदियों की
रोनी सूरत
कुछ ज़्यादा ही
ऐठे हैं।