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नदियों के बीचोंबीच / अनुभूति गुप्ता

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नदियों के
बीचों-बीच उभरी
नुकीली
निर्दयी
सख़्त
चट्टानों ने
सोख लिया
बहती नदियों का
निर्मल जल।
छीन ली,
धारा की मधुर कल-कल।
अनमने पत्थर
उसकी छाती पर
बैठे हैं,
देखकर
नदियों की
रोनी सूरत
कुछ ज़्यादा ही
ऐठे हैं।