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एक खूबसूरत रिश्ता / अनुभूति गुप्ता

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जिन परिवारों में
कई वर्षों से
किसी बच्चे की किलकारी
नहीं गूँजी थी,
उसी के बगल वाले
मकान के
कलकत्ता वाले बाबू जी
सुरक्षित सहेज
लाये थे,
एक
त्यक्त शिशु का जीवन
कचरे के ढेर से।
ओस की बूँदों की
मृदुता को सोखते हुए
नम घास पर
कुछ अपनेपन के
रिश्तों में से ही,
एक खूबसूरत रिश्ता
वह भी रहा।
खून का न सही,
वात्सल्य भरोसे मैत्री का।
जाति-पाँति,
धर्म-कर्म,
रूप-रंग के
भेदभाव से परे
त्यक्त शिशु और
कलकत्ता वाले बाबू जी का।