Last modified on 4 मई 2017, at 16:11

चेहरे विकास के / महेश सन्तोषी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:11, 4 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश सन्तोषी |अनुवादक= |संग्रह=आख...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

विकास का कोई हमसे सही हिसाब तक नहीं लेता,

कल तक ऐसे तो नहीं थे हमारे विकास के चेहरे,
बाज़ार में अब बिकने लगी हैं हमारी आस्थाएँ,
मन पर अब नहीं रहे आत्मा के पहरे!

जमीर जब-जब सड़कों पर नीलाम हुआ,
बेचने वालों में हम ही थे सबसे पहले,
घास से पट गये हैं, पास के शिलान्यास,
इतिहास बन गये शिलालेखों के अँधेरे,
दे सके तो दे दें हम विकास को आँखें
धड़कने और प्राण!

आदमी का चेहरा दे दें उसे हम
उसे दे दें ओस-सी ताज़ी उम्र के सोपान,
वक़्त सबका सही हिसाब रखता है
वक़्त ही नोचेगा कल हमारे चेहरे!