संपादन परिधानों का / महेश सन्तोषी
सिर्फ प्यार की जिन्दगी ही गुजरी तुम्हारे साथ
बाकी ज़िन्दगी नहीं,
फूलों से रिश्ते ही आते हैं, उम्र भर याद
सारी ज़िन्दगी नहीं!
एक दिन जब हमने ओस, आग,
धूप, चाँदनी, पराग को एक साथ छुआ,
उस दिन हमें लगा जैसे हमारा प्यार से पहला परिचय हुआ,
जब हमारी बाहों में सिमटे से लगे, सवेरे, दोपहरियाँ, शाम,
प्यार की परिधियांे में एक-एक कर खोने लगे,
वर्जनाओं से भरे समय के आयाम,
हमने साँसों में बाँट भी लिया, साँसों से बाँध भी लिया,
वह अपरिमित सुख, जो हमें हमारे संचित प्यार ने दिया।
मन के कई कोनों में बिखरी भी रही,
बहतीभी रही, बरसों कोई वासन्ती बयार,
एक स्थायी सावन ही था वो
जिसकी फुहारें हमें भिगोती रहीं बार-बार,
जो प्राणों में स्थापित ही होकर रह गयी।
ऐसी एक बहार का नाम थे तुम,
उम्र के पतझरों में
निर्झर से भरी-भरी उम्र की शाम थे तुम,
सिर्फ प्यार की ज़िन्दगी ही गुजरी तुम्हारे साथ्
बाकी ज़िन्दगी नहीं
फूलों से रिश्ते ही आते हैं उम्र भर याद
सारी ज़िन्दगी नहीं!