हृदय आस मत छोड़ अभी तू
दीप जलेगें फिर से मन में।
किया नहीं है प्यार अगर तो
यौवन वह यौवन क्या होगा,
जिसमें प्रेमिल चाह नहीं है
वह मन बोलो मन क्या होगा।
रूप-रंग-रस-प्रेम भरेगा
फिर से जीवन के उपवन में।
अनगिन आँसू को छलका कर
प्रेमिल-यज्ञ ने तृप्ति पाई,
हर मन में आघात यही पर
प्रेमिल पीड़ा, पीर पराई।
प्रेम-पाप बन गया जगत में
राधा-मोहन हर आँगन में।
बिना तपे क्या मोल स्वर्ण का
पत्थर, बिना तराशे हीरा,
प्रेम-चाह में विष पीकर ही
बनी अधीरा ही थी मीरा।
प्रेम-समर्पण को मत खोना
वाधा कोई हो जीवन में।