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स्क्रीन के भीतर की दुनिया / गिरिजा अरोड़ा

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स्क्रीन के भीतर जो सिमट रही है दुनिया
भावनाओं की नई कहानी लिख रही है
काल सर्प बन रिश्तों के, सामंतीपन को डस रही है
रूठना, मनाना, शिकवा, शिकायत नहीं
स्वतः समझौतों से ये गाड़ी बढ़ रही है

अपने अहसासों को दूसरों पर थोपते नहीं
खुद के डर से किसी को रोकते नहीं
सहायता को ऑनलाईन दिख जाते हैं
वर्ना ये कभी टोकते नहीं
ऐसे लाईक, शेयर, फॉर्वर्ड करने वालों की
अब तादाद बढ़ रही है

वास्तविकता की उम्मीद में
उम्र भर ये रुकते नहीं
हँसने का अवसर न मिले तो
आँसू भी ये भरते नहीं
बेड़ियों को काट
आगे जाती ये पीढ़ी दिख रही है

स्क्रीन के भीतर जो सिमट रही है दुनिया
भावनाओं की नई कहानी लिख रही है