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इस वय में / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
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इतनी जगह कैसे बची रह गई
मेरे मन में
इतने हादसों के बाद
कहाँ बचा रह पाता है
कुछ भी साबुत
फिर कैसे बची रह गई मैं
पूरी की पूरी
निश्छल वैसी ही
इस वय और इन हालात में
जब कि हमारे बीच
दो ध्रुवों की दूरियाँ हैं
क्या है जो उमग रहा है
फिर भी
अच्छे लगने लगे हो
तुम इतना
एक बार फिर
क्यों बेमानी हो उठा है
सब कुछ
इस वय में फिर
एक बार!