भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जलते सफर में / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:42, 11 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दसों दिशाओं में छा गयी थी
अरुणाभा
तुम्हारी हँसी से उस दिन
खूब हँसे थे तुम
जाने किस बात पर
मन आँगन में फैल गयी थी घूप
बरसी थी चाँदनी इतनी
कि
बची है शीतलता आज भी
इस
जलते
सफर में।